Monday, August 31, 2009

Main aur Woh!

एक मैं यहाँ

अपनी चिंताओं से झल्लाया सा

एक वोह बेफिक्र वहां

गुनगुनाता, मुस्कुराता , बेगाना सा


एक मैं सयाना

गहरायी से घबराया सा

एक वोह दीवाना

ऊचयिओं से भरमाया सा


मैं पहले पड़ाव पर ही

सोचूँ मंजिल को पा लिया

एक वोह ! पिछले पड़ाव से ही

नए रास्ते बनाने चला


मैं रोज़मर्रा से जूझते हुए

ठहरा इस पह्चानिसी ज़मीन पर

वोह अनजान आसमान में उड़ चला

प्रेरित एक पंछी देखकर


एक मैं किनारे किनारे

निश्चल और मौन अपने आप से भी

एक वोह तूफ़ान पे सवार

बतियाता अपनी परछाई से भी


एक मैं !

फूलों में भी काटों से बचाता हु

एक वोह !

अंगारे भी हार में पिरोता रहा


एक मैं !

संभव के दामन से लिपटा हुआ

एक वोह !

असंभव की हर सीमा लांघता रहा


3 comments:

  1. Wow..wonderful

    Beautifully captured the contrasting approaches, persona and shades.. keep em coming :-)

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  2. ek mein
    apne bhavo mein khoyi hui
    aur ek gauri
    jisne bhavo ko samet liya
    Cheers:)

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